By
Maulana Wahiduddin Khan

Soulveda

यह केवल आध्यात्मिक उपलब्धि है, जो आपको संतुष्टि की भावना दे सकती है। संतोष शायद ही कभी प्राप्त किया जा सकता है, लेकिन आध्यात्मिक पूर्ति (spiritual fullfillment) अंतिम सीमा तक प्राप्त करने योग्य है। बेचैनी असंतोष की अभिव्यक्ति है। यह मानसिक स्थिति कैसे पैदा होती है? इसका कारण यह है कि सभी लोग ख़ुशी और आनंद की असीमित इच्छा के साथ पैदा होते हैं, इस इच्छा को पूरा करने की कोई बड़ी क्षमता के बग़ैर। मानव स्वभाव की यह कमी लोगों को मानसिक उत्तेजना की स्थिति में अपना जीवन जीने के लिए मजबूर करती है। क्या यह मानव स्वभाव में दोष है, जो इसके लिए ज़िम्मेदार है? बिलकुल नहीं। यह सिर्फ़ लोगों की अपने बारे में बेख़बरी है, जो इस समस्या को पैदा करती है। जागरूकता संतुष्ट जीवन की कुंजी है, जबकि बेख़बरी सभी प्रकार के असंतोष और बेचैनी के लिए ज़िम्मेदार है।

इस हक़ीक़त को ठीक से समझाने के लिए हमें सृष्टिकर्ता द्वारा तैयार की गई योजना (Creation Plan of God) को समझना होगा। सृष्टि-निर्माण योजना के अनुसार, इस दुनिया में भौतिक पूर्ति (material fullfillment) का क्षेत्र बहुत ही सीमित है, जबकि आध्यात्मिक या बौद्धिक विकास  (spiritual or intellectual development) के लिए क्षेत्र इतना विशाल है कि केवल ‘असीमित’ शब्द इसके दायरे का वर्णन कर सकता है। यदि आपका लक्ष्य वस्तुगत दुनिया (material world) में पूर्णता हासिल करना है, तो आप बहुत जल्दी यह जान जाएँगे कि यहाँ इसके लिए बहुत ही सीमित क्षेत्र है। भोजन, कपड़े, नाम, विवाहित जीवन, मनोरंजन— ये सभी चीज़ें अकसर उबाऊ हो जाती हैं। अधिकांश लोगों के लिए छुट्टियों पर जाना भी कोई संतुष्टि का अनुभव नहीं देता है। एक व्यक्ति मनोरंजन की उम्मीदों के साथ छुट्टियों पर जाता है, लेकिन वापस आकर उसे ‘हॉलिडे स्ट्रेस’ हो जाता है। यह संतुष्टि की कमी का एहसास आपके भौतिक अस्तित्व (physical existence) से संबंधित है, जबकि आपका आध्यात्मिक अस्तित्व (spiritual existence) इस तरह की सभी बाधाओं से मुक्त है।

 

मनुष्य का व्यक्तित्व दोहरा व्यक्तित्व होता है— शारीरिक और आध्यात्मिक। भौतिक रूप से एक व्यक्ति के शरीर की सीमाएँ, जैसे— लंबाई, चौड़ाई, स्वास्थ्य, मांसपेशियों और एथलेटिक्स इत्यादि के संदर्भ में होती हैं। इन सीमाओं के कारण एक व्यक्ति अक्सर अपने शारीरिक कौशल से असंतुष्ट हो जाता है। इसके विपरीत उसके आध्यात्मिक या बौद्धिक अस्तित्व की कोई सीमा नहीं है। जिस क्षेत्र में मन यात्रा करता है, वह विशाल और शाश्वत है, जैसे— ख़ला (space), जो पूरे अंतरिक्ष में फैली हुई है। मन सोच के द्वारा यात्रा करता है और सोच की कोई सीमा नहीं है। सभी प्रकार की सीमाओं को पार करते हुए यह अपनी यात्रा पर बिना किसी रोक के जारी रहता है।

आइए, हम एक व्यापारी की गतिविधियों पर विचार करें। यह भौतिक दुनिया तक ही सीमित है। अपने कार्यक्षेत्र की संकीर्णता के कारण उसके बोरियत का शिकार होने की बहुत संभावना है। अमेरिकी बिज़नेस मैग्नेट बिल गेट्स ने एक बार सही कहा था— “जब आप एक मिलियन डॉलर के पार हो जातें हैं, मुझे आपको बताना है, सभी का हैमबर्गर समान होता है।” वैज्ञानिक खोज बौद्धिक क्षेत्र में यात्रा करने का एक उदाहरण है। यही कारण है कि वैज्ञानिक शायद ही कभी व्यापारी की बोरियत से पीड़ित होतें हैं। उदाहरण के लिए, न्यूटन ने अपने जीवन के अंत में अपने बारे में कहा था— “मैं समुद्र के किनारे एक बच्चे की तरह खेल रहा था और चिकने या समान्य से अधिक सुंदर पत्थर ढूँढ रहा था, जबकि मेरे सामने महान सत्य का सागर अभी खोजना बाक़ी है।” महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन की भावना भी ऐसी ही थी, जब उन्होंने कहा— “जितना अधिक मैं सीखता हूँ, उतना ही मुझे यह एहसास होता है कि मैं कितना नहीं जानता हूँ।”

वैज्ञानिक खोज से भी बड़ी आध्यात्मिक खोज है। इसका कारण बहुत स्पष्ट है। गैलीलियो गैलिली के अनुसार, वैज्ञानिक खोज प्रकृति के मात्रात्मक (quantitative) पहलू का अध्ययन है, जबकि आध्यात्मिक खोज इसके गुणात्मक (qualitative) पहलू से संबंधित है और यह एक हक़ीक़त है कि प्रकृति का गुणात्मक पहलू इसकी मात्रात्मक तुलना में अथाह विशाल है। जो आध्यात्मिक खोज को बौद्धिक गतिविधि के रूप में अपनाता है, वह ‘आध्यात्मिक वैज्ञानिक’ होता है। एक भौतिक वैज्ञानिक एक जगह पर अपनी रिसर्च में रुक सकता है, लेकिन आध्यात्मिक वैज्ञानिक के लिए यह कहावत भी अपर्याप्त हो जाती है कि ‘आकाश सीमा है’। यह केवल आध्यात्मिक उपलब्धि है, जो आपको संतुष्टि का एहसास दे सकती है। भौतिक पूर्ति शायद ही कभी प्राप्त की जा सकती है, लेकिन आध्यात्मिक संतुष्टि अंतिम सीमा तक प्राप्त की जा सकती है।

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