नफ़रत का बम
हर इंसान के अंदर एक छिपा हुआ शैतान होता है, जिसे नफ़रत का बम (hate bomb) कहा जा सकता है। सामान्य परिस्थितियों में यह बम सोया हुआ रहता है, लेकिन यदि इसे उकसाया जाए, तो अचानक यह उग्र रूप ले लेता है। यह एक वास्तविकता है कि हर इंसान में नफ़रत के इस बम के जगने की संभावना होती है।
इसका अर्थ यह है कि हर व्यक्ति एक अत्यधिक विस्फोटक (highly inflammable) पदार्थ है। यदि किसी समाज में दस हज़ार लोग हैं, तो वे दस हज़ार चलते-फिरते ज्वलनशील पदार्थों का समूह हैं। सामान्य रूप से, यह उनका निजी हित है जो उन्हें शांत बनाए रखता है, भले ही वे स्वभाव से उग्र हों।
इस स्थिति में नेतृत्व करना बहुत कठिन कार्य होता है। यदि किसी नेता के पास केवल शिकायत और विरोध का नारा है, तो उसे सार्वजनिक रूप से सामने नहीं आना चाहिए, क्योंकि उसका नकारात्मक नारा समाज में उथल-पुथल मचाएगा।
एक नेता का यह कर्तव्य है कि यदि उसके पास प्रेम का संदेश है, तो ही वह समाज में अपनी मुहिम लेकर आए। यदि उसके पास केवल नफ़रत और शिकायतें हैं, तो बेहतर यही है कि वह खुद को सीमित रखे।
सामाजिक आंदोलनों के दो प्रकार होते हैं— सकारात्मक आंदोलन और नकारात्मक आंदोलन। सकारात्मक आंदोलन वह है जो कर्तव्य के आधार पर उठाया जाए; यह एक सही आंदोलन होता है। जबकि नकारात्मक आंदोलन वह है जो अधिकारों की माँग और विरोध के आधार पर उठाया जाए; यह एक अस्थिर आंदोलन होता है। सकारात्मक आंदोलन हमेशा अच्छे परिणाम लाता है, और नकारात्मक आंदोलन का अंत हमेशा बुरे परिणामों में होता है।