एक कठिनाई, दो आसानियाँ
क़ुरआन की सूरह 94 में फितरत (प्रकृति) के एक सिद्धांत को इन शब्दों में बताया गया है:
فَإِنَّ مَعَ الْعُسْرِ يُسْرًا، إِنَّ مَعَ الْعُسْرِ يُسْرًا
"निःसंदेह, कठिनाई के साथ आसानी है। निःसंदेह, कठिनाई के साथ आसानी है।" (अल-इंशिराह: 5-6)
एक रिवायत (परंपरा) के अनुसार, रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इस आयत की व्याख्या इन शब्दों में की:
لَن يَغْلِبَ عُسْرٌ يُسْرَيْنِ، لَن يَغْلِبَ عُسْرٌ يُسْرَيْنِ
"एक कठिनाई दो आसानियों पर हावी नहीं हो सकती। एक कठिनाई दो आसानियों पर हावी नहीं हो सकती।" (मुवत्ता इमाम मालिक, हदीस संख्या 1621)
इस व्याख्या की और अधिक स्पष्टता हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास के एक कथन से होती है। उन्होंने कहा:
يَقُولُ اللَّهُ تَعَالَى: خَلَقْتُ عُسْرًا وَاحِدًا، وَخَلَقْتُ يُسْرَيْنِ، وَلَنْ يَغْلِبَ عُسْرٌ يُسْرَيْنِ
"अल्लाह ने फरमाया कि मैंने एक कठिनाई पैदा की और दो आसानियाँ पैदा कीं। और एक कठिनाई दो आसानियों पर कभी हावी नहीं हो सकती।" (तफसीर अल-क़ुर्तुबी, जिल्द 20, पृष्ठ 107)
यह कोई रहस्यमय बात नहीं, बल्कि एक ज्ञात वास्तविकता है जिसे मानव प्रकृति के अध्ययन से समझा जा सकता है। मनोविज्ञान के अनुसार, जब इंसान किसी कठिनाई का सामना करता है और हिम्मत नहीं हारता, तो उसके अंदर दोगुनी ताकत आ जाती है। एक ताकत वह जो सामान्य स्थिति में पहले से मौजूद थी, और दूसरी ताकत वह जो बढ़ी हुई प्रेरणा (incentive) की वजह से उसके अंदर आती है।
इस प्रकार, कठिनाई आने पर इंसान अपने अंदर बढ़ी हुई प्रेरणा के कारण अधिक दृढ़ता और हिम्मत के साथ कठिनाई का सामना करने में सक्षम हो जाता है।
इंसान को चाहिए कि वह मानव प्रकृति के इस रहस्य को समझे और कठिनाई आने पर खुद को संयमित रखे। ऐसा करने से वह प्रकृति को यह अवसर देगा कि वह उसकी ताकत को दोगुना कर सके और उसकी सफलता सुनिश्चित कर सके। कठिनाई प्रकृति के नियम का हिस्सा है। इसी तरह यह भी प्रकृति का हिस्सा है कि जब इंसान पर कोई कठिनाई आए, तो वह दोगुनी ताकत के साथ उसका सामना करने के योग्य हो जाए।