सफलता का रहस्य

एक इमाम साहब का एक किस्सा है। वे अपनी मस्जिद में जुमे का खुतबा (शुक्रवार का उपदेश) देते थे। खुतबे से पहले वे अक्सर उर्दू में भाषण देते थे, जिसमें वे विवादास्पद मुद्दों पर सख़त रवैया अपनाते थे। अपनी समझ के अनुसार, वे जिस विचारधारा को सही मानते थे, उसके खिलाफ़ विचारधारा की कड़ी आलोचना करते थे।

इस पर मस्जिद में बड़ी संख्या में नमाज़ियों ने उनके खिलाफ़ आवाज़ उठाई और कहने लगे कि उन्हें इस पद से हटा देना चाहिए। जब मेरी इमाम साहब से मुलाकात हुई, तो बातचीत के दौरान मैंने उनसे पूछा कि आप ऐसी आलोचनात्मक बातें क्यों करते हैं। उन्होंने कहा कि यह तो सच और झूठ का मामला है। यदि मैं इस मामले में न बोलूँ, तो मैं गुनहगार हो जाऊँगा।

मैंने उनसे कहा कि आपकी सोच सही नहीं है। वास्तविकता यह है कि सामूहिक मामलों में अक्सर सही और गलत नहीं देखा जाता, बल्कि यह देखा जाता है कि क्या संभव है और क्या असंभव। पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की ज़िन्दगी का अध्ययन करने से पता चलता है कि यही आपका तरीका था। मैंने उदाहरण देकर इमाम साहब को समझाया, और उन्होंने मेरी बात मान ली। इसके बाद उन्होंने आलोचनात्मक रवैया छोड़ दिया और अपनी बात को समझदारी के साथ प्रस्तुत करने लगे।

यह जीवन का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। सामूहिक जीवन में हमेशा समझदारी का महत्व होता है। जो व्यक्ति समझदारी का तरीका नहीं अपनाता, वह केवल समस्याओं को बढ़ाता है, उन्हें हल नहीं कर सकता। जीवन में सच्ची सफलता केवल धैर्य अपनाने वाले को मिलती है। धैर्य का तरीका छोड़ने के बाद किसी को कोई सच्ची सफलता नहीं मिल सकती।

सामूहिक मामलों को हमेशा सही और गलत के दृष्टिकोण से देखना केवल जोश का परिणाम होता है। जिन लोगों के अंदर धैर्य और सहनशीलता होती है, वे मामले पर गंभीरता से विचार करेंगे और फिर वही तरीका अपनाएँगे जो स्थिति की रोशनी में परिणामदायक साबित होने वाला हो।

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