हर चीज़ एक इम्तिहान का पेपर है

हदीस में आया है कि अल्लाह के रसूल ने एक सहाबी को नसीहत करते हुए फ़रमाया: “जो तुम्हें मिला, वह तुमसे खोया जाने वाला नहीं था। और जो तुमसे खो गया, वह तुम्हें मिलने वाला ही नहीं था” (मुसनद अहमद, हदीस संख्या 21611)। इस हदीस से यह समझ में आता है कि इस दुनिया में इंसान को जो कुछ भी मिलता है, वह न तो संयोग से मिलता है और न ही इनाम के रूप में, बल्कि यह सब एक इम्तिहान के पेपर की तरह होता है। ख़ुदा के फ़ैसले के तहत, हर औरत और मर्द को कुछ चीजें दी जाती हैं, ताकि उनमें आज़माकर देखा जाए कि इंसान का रवैया कैसा है। कभी ख़ुदा कोई चीज़ देकर इम्तिहान लेता है कि इंसान ने उस पर शुक्र किया या उसे पाकर घमंड में पड़ गया। इसी तरह कभी कोई चीज़ छीनकर ख़ुदा इंसान का इम्तिहान लेता है कि उससे महरूम होकर उसने सब्र किया या शिकायती ज़ेहन में पड़ गया।

यह ख़ुदा की रचना संबंधी योजना (creation plan of God ) है। ऐसी स्थिति में इंसान की नज़र इस पर नहीं होनी चाहिए कि उसने क्या पाया और उससे क्या छीना गया। इसके बजाय उसका सारा ध्यान इस पर होना चाहिए कि जिन हालात में रखकर ख़ुदा ने उसका इम्तिहान लेना चाहा था, उसमें उसने मुनासिब (उपयुक्त) जवाब दिया या वह जवाब देने में नाकाम हो गया।

यह ज़िंदगी का सकारात्मक दृष्टिकोण है। यह ज़िंदगी का सकारात्मक फ़ॉर्मूला है। जिस इंसान में यह मिज़ाज पैदा हो जाए, वह कभी तनाव में नहीं पड़ेगा। वह किसी भी हाल में न मायूस होगा और न ही कड़वाहट में फंसेगा। कोई भी अनुभव उसे ज़िंदगी की रचनात्मक राह से नहीं भटका सकेगा। वह कभी भी मानसिक या वैचारिक उलझन में नहीं पड़ेगा। उसकी ज़िंदगी में कभी यह घटना नहीं घटेगी कि उसकी ज़िंदगी हालात के भंवर में फंसकर रह जाए और वह अपनी आख़िरी मंज़िल तक न पहुंचे।

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