मेहमान-नवाज़ी या दिखावा

आजकल यह आम प्रचलन है कि लोग अपने मेहमानों के खाने-पीने का बहुत ज़्यादा इंतज़ाम करते हैं और इस पर काफी पैसा खर्च करते हैं। अगर उनसे कहा जाए कि यह फ़िज़ूलखर्ची और संसाधनों को व्यर्थ करना है, तो वे कहते हैं कि यह शरियत की शिक्षा है, क्योंकि इस्लाम में "इकराम-ए-ज़ैफ़" (मेहमान का सम्मान) का आदेश है।

मगर यह पूरी तरह से ग़लतफहमी है। शरियत में जिस इकराम-ए-ज़ैफ़ का आदेश है, वह केवल आवश्यकता के अनुसार है, न कि दिखावे और तकल्लुफ़ के लिए। हदीस में इकराम-ए-ज़ैफ़ की शिक्षा दी गई है। हदीस में है कि हज़रत मुहम्मद (स.अ.व.) ने फ़रमाया, "जो ईश्वर पर और आख़िरत के दिन पर विश्वास रखता हो, उसे चाहिए कि अपने मेहमान का इकराम करे।" मगर इकराम का अर्थ हरगिज़ तकल्लुफ़ (दिखावा) नहीं। यह एक मानवीय और नैतिक कार्य है, न कि कोई दिखावे की चीज़।

मेहमान के लिए तकल्लुफ़ से बचने की सख़्त हिदायत दी गई है। हज़रत सलमान (रज़ि.) ने बताया, "पैग़म्बर मुहम्मद (स.अ.व.) ने हमें मेहमान के लिए तकल्लुफ़ करने से मना किया।" (शु’ब-उल-ईमान 9155) इसी तरह, एक हदीस में पैग़म्बर मुहम्मद (स.अ.व.) ने फ़रमाया, "मैं और मेरी उम्मत के परहेज़गार लोग तकल्लुफ़ से बहुत दूर रहते हैं।" (अल-मक़ासिदुल हसनः, 191)

वास्तव में, मेहमान की खातिरदारी में जो तकल्लुफ़ किया जाता है, वह असल में मेज़बान के खुद के सम्मान का एक रूप होता है, न कि मेहमान का सम्मान। एक परहेज़गार व्यक्ति के लिए तकल्लुफ़ जैसी दिखावटी चीज़ का कोई महत्व नहीं होता।

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