हर चीज़ एक इम्तिहान का पेपर है

हदीस में आया है कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक सहाबी को नसीहत करते हुए फ़रमाया: “जो तुम्हें मिला, वह कभी तुमसे खोने वाला नहीं था; और जो तुमसे खो गया, वह कभी तुम्हें मिलने वाला नहीं था।” (मुसनद अहमद, हदीस संख्या 21589)।

इस हदीस पर ग़ौर करने से मालूम होता है कि मौजूदा दुनिया में किसी इंसान को जो कुछ मिलता है, वह न तो इत्तेफ़ाक़न (संयोगवश) मिलता है और न ही इनाम के तौर पर। इस दुनिया में जो कुछ इंसान को मिलता है, वह केवल इम्तिहान के पेपर के तौर पर मिलता है। ख़ुदा के फ़ैसले के तहत, हर औरत और मर्द को कुछ चीज़ें दी जाती हैं, ताकि उनमें आज़माकर देखा जाए कि इंसान का रवैया कैसा है। कभी ख़ुदा कोई चीज़ देकर इम्तिहान लेता है कि इंसान ने उस पर शुक्र किया या उसे पाकर घमंड में पड़ गया। इसी तरह कभी कोई चीज़ छीनकर ख़ुदा इंसान का इम्तिहान लेता है कि उससे महरूम होकर उसने सब्र किया या शिकायत की मानसिकता में फँस गया।

यह ख़ुदा का तख़्लीकी नक़्शा है। ऐसी स्थिति में इंसान की नज़र इस पर नहीं होनी चाहिए कि उसने क्या पाया और उससे क्या छीना गया। इसके बजाय उसका सारा ध्यान इस पर होना चाहिए कि जिन हालात में रखकर ख़ुदा ने उसका इम्तिहान लेना चाहा था, उसमें उसने मुनासिब (उपयुक्त) प्रतिक्रिया दिया या वह मुनासिब  प्रतिक्रिया देने में नाकाम हो गया।

यह ज़िंदगी का सकारात्मक नज़रिया है।, और यह ज़िंदगी का सकारात्मक फ़ॉर्मूला भी है। जिस इंसान में यह मिज़ाज पैदा हो जाए, वह कभी तनाव में नहीं पड़ेगा। वह किसी भी हाल में न मायूस होगा और न ही कड़वाहट का शिकार होगा। कोई भी तजुर्बा उसे ज़िंदगी की तामीरी (रचनात्मक) राह से हटाने वाला साबित नहीं होगा। वह कभी वैचारिक उथल-पुथल में नहीं पड़ेगा। उसकी ज़िंदगी में कभी यह हादसा पेश नहीं आएगा कि उसकी ज़िंदगी मुश्किल हालात में उलझकर रह जाए और वह अपनी आख़िरी मंज़िल तक न पहुंच सके।

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